गिरिडीह के गांव में आज भी मरीजों को खटिया के सहारे अस्पताल पहुंचाया जाता है

विशेष संवाददाता द्वारा
गिरिडीह. गिरिडीह जिले के नक्सल प्रभावित इलाका तीसरी प्रखंड के अंतर्गत आने वाले बीच जंगल में बसे आदिवासी बहुल लक्ष्मीबथान गांव जहां पर आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बावजूद अभी तक सड़कें नहीं बनी है. लोगों को अभी भी पगडंडियों के सहारे आना-जाना पड़ता है.
मिली जानकारी के अनुसार यहां पर ना एंबुलेंस गाड़ियां आ सकती है और ना ही मोटरसाइकिल. सिर्फ पैदल आने-जाने के लिए पगडंडियां बनी हुई है, जिसकी वजह से आज 14 वर्षीय एक बच्चा जो गंदे पानी पीने से डायरिया से ग्रस्त था, जिसके वजह से पिछले 2 दिनों से लगातार दस्त का शिकार है. उसे उनके परिजन खटिया पर टांग कर पगडंडियों के सहारे लगभग 20 किलोमीटर दूर तीसरी स्थित अस्पताल ले जाया जाना पड़ा.
स्थानीय लोगों के अनुसार आज से 1 वर्ष पूर्व इसी गांव से गर्भवती महिला सूरजी मरांडी को खटिया से टांग कर अस्पताल ले जाया जा रहा था लेकिन दर्द से तड़पती हुई उस महिला का समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने से रास्ते में ही मौत हो गई थी, जिसके बाद सरकारी अधिकारियों और बाबूलाल मरांडी ने यहां पर रास्ता बनवाने के अलावा पानी पीने की व्यवस्था, इंटरनेट के लिए बीएसएनएल टावर लगवाने का आश्वासन दिया था, लेकिन समस्या अभी भी जस के तस बनी हुई है.
बता दें, जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा सिर्फ इन लोगों को अभी तक आश्वासन ही मिला है. यहां की जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं आया है. अभी भी ये लोग नदी नाले के पानी पीने को मजबूर हैं. रास्ता नहीं होने की वजह से पगडंडियों के सहारे पैदल आना-जाना कर रहे हैं. अगर किसी को अस्पताल ले जाना पड़ता है तो खटिया पर टांग कर मिलो दूर ले जाना पड़ता है, जब समय पर इलाज के अभाव में किसी की मृत्यु होती है तो यहां पर जनप्रतिनिधि और सरकारी बाबू सिर्फ सांत्वना देते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं.
सबसे बड़ा सवाल है कि 75 वर्षों से इन लोगों को सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहेगा क्या, या कभी यहां के लोगों को सरकार की तरफ से मदद की भी जाएगी या तो फिर इसी तरह अपने ही हाल पर छोड़ दिया जाएगा. यहां के लोगों का यह भी कहना है कि सरकार हमें अपना नहीं मानती है. यही सब वजह है जिससे तंग आकर, परेशान होकर लोग नक्सली बन जाते हैं

 

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